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________________ "० स्मरण कला अस्थिरता, विचार शून्यता, भ्रम, चक्कर, अनिद्रा, सिरदर्द आदि रोग हो जाते हैं। इसीलिए कहा है कि शोकः क्रोधश्च लोभश्च, कामो मोह परासुताः । ईर्ष्या मानो विचिकित्सा, घृणासूया जुगुप्सता ।। द्वादशैते बुद्धिनाश-हेतवो मानसा मलाः । शोक, क्रोध, लोभ, काम, मोह, पर-पीडक विचार, द्वेष, अहंकार, संशय, घृणा, परदोषदर्शिता और परनिन्दा ये बुद्धि नाशक मानसिक दोष हैं। 0. शरीर और मन इन दोनों को योग्य आराम की आवश्यकता. है। इसलिए निम्नलिखित सूचनाएं ध्यान मे रखनी चाहिए। १ पर्याप्त निद्रा। २. जागृत अवस्था मे डेढ या दो घण्टे का पाराम । एक साथ इतना समय मिल सके तो ठीक है अन्यथा दो विभाग करके इतने समय तक आराम करना। हम आराम कर सकें ऐसी स्थिति नहीं है, यह मानने वाले और कहने वाले गलत रास्ते पर हैं। आराम नई शक्ति को प्राप्त करने का माधन है। खान-पान, व्यायाम और प्राणायाम आदि उतना ही जरूरी है, धांधली का जीवन (अत्यन्त व्यस्तता का जीवन). कीमती जीवन के अनेक वर्षों को कम कर देता है। ३. आराम करने के लिए आराम कुर्सी, सोफा, सतरजी या दूब पर निश्चिन्त गिरना चाहिए। ४. थोड़ी देर शवासन में सोना चाहिए। ५. समग्र विचारो और चिन्तामो को छोड़कर मन को हल्का बनाना चाहिये। ६. मन को तनावग्रस्त से तनावग्रस्त रखे उतना काम का बोझ सिर पर कभी नहीं रखना चाहिए और उसी कारण से उस दिन अस्थिर या अति साहसिक कार्य मे प्रवेश नही करना चाहिए।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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