SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 49
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम पत्र साधक की चर्या (२) प्रिय बन्धु । तुम्हे गत पत्र की विज्ञप्ति के मुताबिक प्रातःकाल की विधि के बाद के कार्यक्रम की रूपरेखा लिख कर भेज रहा हूँ। इन सूचनाओं का महत्त्व सही-सही पहचानना और अपनी जीवन चर्या में अपेक्षित परिवर्तन करना। १. लगभग सात बजे तक प्रात काल की समग्र क्रियाये सम्पन्न कर दुग्ध पान करना। इसका लाभ अनुभवी पुरुषो ने सौ सौ मुखौं से गाया है । उन्होने बताया है दुग्ध सुमधुर स्निग्ध वात-पित्त-हर सरम्, सद्य शुक्रकर शीत सात्म्य सर्वशरीरिणाम् । जीवन वृहण बल्यं मेध्य बाजीकर परम्, वय स्थापनमायुष्य सन्धिकारी रसायनम् ।। दूध मधुर, स्निग्ध, वात पित्त नाशक, दस्त साफ लाने वाला, वीर्य को जल्दी पैदा करने वाला सब प्राणियो के लिए अनुकूल, जीवन रूप, पुष्टिकारक, बलदायक, मेधा वर्धक, धातु की पुष्टिकर्ता, आयुष्य की स्थिरता तथा वृद्धि करने वाला रसायन है । दूध के साथ दूसरी अनुकूल वस्तुये भी नाश्ते के रूप मे ली जा सकती है। चाय, कॉफी और कोकाकोला जैसे पेय पदार्थो का इन दिनों मे बहुत प्रचार हो गया है, पर दूध की तुलना मे सब निस्सार है, नि सत्त्व हैं। इनमे लाभ की अपेक्षा हानि की सम्भावना अधिक है। देश के उभरते बालकों को
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy