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________________ ३२ स्मरण कला एक शीशी मे भरले । इतना चूर्ण लगभग ५० वार काम मे आ सकता है । आवश्यकता अनुरूप इसके प्रमाण को को कम बेसी किया जा सकता है । यदि दूसरी कोई औषधि अनुकूल पडती हो तो प्रासगिक रूप से उसका उपयोग करने मे भी कोई आपत्ति नही है। परन्तु वह अधिक विरेचक (दस्तावर) नही ' होनी चाहिये, यह खास ध्यान में रखे।। मल विसर्जन के बाद मल-मूत्र के मार्ग तथा हाथ-पग आदि अवयवो की स्वच्छ जल से अच्छी तरह शुद्धि कर लेनी चाहिये । उसके लिये कहा गया है कि मेध्यं पवित्रमायुष्यमलक्ष्मीकविनाशकम' । णदयोर्मलमार्गाणा शौचाधानमभीक्ष्ण ॥ हाथ, पग और मल-मूत्र आदि के मार्गों को जल से स्वच्छ करना मेधाकारक, पवित्र, आयुष्यवर्धक और दारिद्रय-विनाशक माना जाता है। (च) उसके बाद दान्तून से दाँत, जीभ और आँखो को स्वच्छ करना चाहिये । दांतो की स्वच्छता के लिए बबूल की दान्तून तथा नमक उत्तम है। शास्त्रीय पद्धति से बना हुआ मजन भी प्रयोग मे लाया जा सकता है। उसके लिए श्रायुर्वेद का मन्त्र निम्नोक्त है कदम्बे तु धृतिर्मेधा, चम्पके दृढवाक्थु ति । अपामार्गे धृतिर्मेधा प्रज्ञाशक्तिस्तथासने । कदम्ब वृक्ष की दान्तून से धृति और मेधा, चम्पक की दान्तून से वारणी तथा श्रवण शक्ति, अपामार्ग-पागा आधीझाडा की दान्तून से धैर्य और बुद्धि और आसन (अश्वगध) की दान्तून से प्रज्ञाशक्ति विकसित होती है। सप्ताह में एकाध बार माजुफल उबाल कर, उसमे थोडी फूली हुई फिटकरी डाल कर उससे कुल्ले करना हितप्रद है।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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