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________________ स्मरण कला ? २९ उपदंश-क्षय को द्वितीय और तृतीय अवस्था, अनिद्रा, स्खलित निद्रा, सिर का दर्द, आँतो की व्याधि और बार-बार स्वप्न दोष . आदि । ये रोग धीरे-धीरे स्मृति की तीव्रता को खोते चले जाते हैं और अन्त मे थोडा याद रखना भी मुश्किल हो जाता है। इन रोगियो को स्मृति-सस्कार के लिए पहले से ही रोगो का .. उचित उपचार करना चाहिए। ५ जिनके जन्म से ही दिमाग की कमजोरी हो उनकी बात एक बार, एक तरफ रखें; परन्तु जिनको चक्कर लाने से या धक्का । लगने पर अथवा भारी बुखार आने पर या टाईफाइड जैसी बीमारी पीछे पड़ने पर ज्ञान-तन्तुओं में निर्बलता आती है और उसी कारण से स्मृति मे मन्दता आती है। उन्हे बिना विलम्ब कुशल चिकित्सको की देख-रेख मे उपचार कराना चाहिये। ६. शरीर, मानसिक विकास का प्रथम साधन है। ७. गुलाबी निद्रा शरीर और मन को ताजगी देने के लिए उत्तमो त्तम दवा हैं। जो वैसी नीद लेने के लिए भाग्यशाली है, उनका मन प्रातःकाल उठते समय प्रसन्नता से भरपूर होता है। उसमे भी यदि यह समय सूर्योदय से डेढ या दो घडी पहले का हो, तो वायुमण्डल की सात्त्विकता से पूर्ण होकर भारी एकाग्रता अनुभव की जा सकती है, गहरा चिन्तन किया जा सकता है और सीखी हुई विद्या या अतीत के अनुभवो को सरल रीति से स्मृति मे लाया जा सकता है। इसके विपरीत, जो लोग रात्रि मे बहुत देर तक जागते हैं और सुबह विलम्ब से उठते हैं । उनके मनो मे राजस् और तमोगुणं की वृद्धि हो जाती है, जिससे उनकी बुद्धि तथा स्मृति कुण्ठित हो जाती है । 'रात रहे ज्याहरे पाछली खट घड़ी, साधु पुरुष ने सूई न रहेबु' यह पक्ति नरसिंह मेहता ने पूर्व पुरुषो की वैसे ही अपने अनुभव पर लिखी है। , ८ प्राचीन काल मे शीघ्र सोकर शीघ्र उठने की परिपाटी का सम्यक् प्रकार से अनुसरण होता था। इस कारण उनके शरीर नीरोग, मन मजबूत और हृदय सात्त्विकता से भरपूर रहते । - जबकि आज धन्धे प्रधान और विलासी जमाने मे बहुत देर तक
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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