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________________ स्मरण कला १२१ करना हो तो उस समय अश्व का ही विचार किया जा सकता है, पर गधा, ऊंट या हाथी का विचार नही किया जा सकता। दूसरी प्रकार से यों भी कहा जा सकता है कि अश्व को ही केन्द्र में रख कर जिस विचारधारा का अवलम्बन लिया जाता है, वह अश्व विषयक एकाग्रता है और उस समय उसके सिवाय जो भी कोई “विकल्प उठते हैं वे सब विक्षेप है। इसलिये जो वस्तु भूलनी हो वह भूल जायें तब ही एकाग्रता सिद्ध होती है । योग शास्त्र में महर्षि पतजलि ने चित्त की पाच दशाएं बताई है, वे इस प्रकार है- . .(i) क्षिप्त-खूब आन्दोलित अर्थात् बहुत ही अस्थिर . , (2) मूढ-जड-प्रमाद-युक्त । (3) विक्षिप्त-प्रस ग-प्रसंग पर स्थिरता का अनुभव करने वाला । (4) एकाग्र-एकत्व के अंवलम्बन से स्थिर रहने वाला। 1 (5) निरुद्ध-कोई भी तत्त्व के पालम्बन बिना स्थिर रहने वाला। " इस अवस्था में प्रमाद, विपर्यय, विकल्प, निद्रा या स्मृति आदि कोई भी वृत्ति नहीं रहती है । मात्र स स्कार ही शेष रहते हैं। इसलिये यहाँ एकाग्रता से भी मन की बहुत ऊंची स्थिति है, जो योग्य अभ्यास से सांधी जा सकती है। - पूर्व पत्रो का पुन: पुनः वाचन हो यह इष्ट है। :: . ': ।। . , , , , मगलाकांक्षी “, ', ' . . . . . . . 'धी. 5 - - - - - - ... .. - स्मरण शक्ति एक अजीब शक्ति । भूलने के सात कारण; स्मृतिभ्र श-उसके दो प्रकार, विस्मरण के लिए, चित्त की पाच अवस्थामो में एकाग्रता मुख्य। - - -
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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