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________________ भाव से किया गया एक नमस्कार भी जीव को शिव बनाने का शास्त्रीय विधान यथार्थ ठहराता है। इस प्रकार प्रभु के नाम-स्मरण का प्रभाव अकल्पनीय है, अचिन्त्य है 'कल्याण मन्दिर स्तोत्र' और 'भक्तामर स्तोत्र' मे भी प्रभु-नाम का अचिन्त्य प्रभाव प्रदर्शित किया गया है। "प्रास्तामचिन्त्यमहिमा जिन सस्तवस्ते, नामापि पाति भवतो भवतो जगन्ति ........... (कल्याण मन्दिर स्तोत्र-श्लोक ७) अर्थ -हे जिनेश्वर देव ! आपके गुण-स्तवनो की तो अचिन्त्य महिमा है ही, परन्तु आपके नाम का स्मरण भी विश्व के जीवो को पावन करता है, अशुभ भावो से हटाकर शुभ भावो मे लगाता है । त्वन्नाममत्रमनिश मनुजा स्मरन्तः, सद्यः स्वय विगत बन्धभया भवति (भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४२) अर्थः हे नाथ ! आपके नाम-मन्त्र का निरन्तर स्मरण करने वाले व्यक्ति बन्धन से शीघ्र मुक्त होते हैं । परमात्म-नाम रूप मन्त्रात्मक देह श्री अरिहन्त परमात्मा का नाम उनकी मन्त्रात्मक देह है । सभी अरिहन्त भगवन्त मोक्ष-गमन के समय समस्त जीवो के उद्धार के लिये अपनी मन्त्रात्मक देह को विश्व पर रखते जाते हैं । इससे उनकी अनुपस्थिति मे भी साधक अरिहन्त नाम (श्री अरिहन्त परमात्मा की मन्त्रात्मक* देह) के * जग्मुजिनास्तदपवर्गपद तदैव, विश्व वराकमिदमत्र कथ विना स्यात् । तत् सर्व लोक भवनोद्धरणाय धीरै मन्त्रात्मक निजवपुनिहितं तदत्र ॥ (नमस्कार स्वाध्याय भाग पहला) मिले मन भीतर भगवान ११७
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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