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________________ नाम स्मरण का अपूर्व चमत्कार , श्री पच परमेष्ठी भगवन्तो के नाम-स्मरण द्वारा विचार और वाणी विशुद्ध बनते हैं और वे हमारे व्यवहार को विशुद्ध करते हैं । विशुद्ध विचार, वाणी एव व्यवहार से पूर्ण शुद्ध स्वात्म स्वरूप की क्षुधा जागृत होती है । अत जैन-दर्शन मे सर्वप्रथम उसकी शिक्षा प्रदान की जाती है। श्री पंच परमेष्ठी भगवन्तो के नाम स्मरण, वन्दन एव गुणो के कीर्तन द्वारा आत्मा के असख्य प्रदेशो मे प्रविष्ट पाप के परमाणुग्रो का नाश होता है, आत्मा लघुकर्मी बनती है, धीरे-धीरे प्रात्मा बहिरात्म-दशा से विमुख होती जाती है, अन्तरात्म दशाभिमुख होती जाती है और अन्त मे परमात्म-दशा का अनुभव करने वाली बनती है। इस प्रकार प्रात्मा को परमात्मा बनाना अर्थात् जीव को शिव । बनाना ही श्री जिन शासन के सारभूत श्री नवकार का सार है। अनादि काल से विभाव के वश मे होकर प्रात्मा ने क्रूर कर्मों की क्रूरता सहन की, दुर्गति के भयानक कष्ट सहन किये और जन्म-मरण की परम्परा का सजन किया। चौदह पूर्वो के ज्ञान द्वारा विभाव की भयकरता एव स्वभाव की भद्र करता का ध्यान पाता है और प्रात्मा विभाव से विरम कर स्वभाव मे स्थिर होकर शुद्ध प्रात्म-स्वरूप को प्रकट कर सकती है। श्री पच परमेष्ठी भगवन्नो के नाम-स्मरण द्वारा और स्वरूप के चिन्तन, मनन, ध्यान द्वारा भी आत्मा विभाव से विरम कर, स्वभाव मे स्थिर होकर शुद्ध स्वात्म स्वरूप को प्रकट कर सकती है, इसीलिये वह चौदह पूर्व का सार माना जाता है । चौदह पूर्वी भी अन्त मे उसकी शरण ग्रहण करते हैं । - तात्पर्य यह है कि पच परमेष्ठी भगवन्तो के नाम स्मरण मे पापप्रकृतियो को भेदने की अचिन्त्य शक्ति निहित है, आत्मा को निष्पाप बनाने मिले भन भीतर भगवान ११५
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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