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________________ इस प्रकार परम मंगलमय श्री अरिहन्त परमात्मा के उपकारों की कोई सीमा नहीं है। चरम तीर्थपति श्री महावीर स्वामी का निर्वाण हुए २५११ वर्ष होने पर भी उनके द्वारा प्रकाशित सर्व कल्याणकारी धर्म की प्राज भी अनेक पुण्यात्मा सविधि एव सम्मानपूर्वक आराधना कर रहे हैं, वह उनकी पाटपरम्परा को स्वामि-भक्ति पूर्वक उज्ज्वल करने वाले समर्थ प्राचार्य देव आदि भगवतो का उपकारी प्रभाव भुलाया नही जा सकता। इस प्रकार श्री मरिहन्त परमात्मा द्वारा फरमाया हुआ धर्म हम तक पहुँचा और अज्ञानाधकार मे भटकते हम सबको सद्गुरुप्रो ने सुमार्ग बताया, भव-स्वरूप की भयकरता का भग्न करा कर, भाव की भद्र करता का ज्ञान कराया और हमे स्वभाव सम्मुख वनाया । जिनके च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल-ज्ञान और निर्वाण ये पांचो कल्याणको के रूप मे विश्व-विख्यात हैं, उन श्री परिहन्त परमात्मा का असीम वात्सल्य सचमुच भवर्णनीय है। जिनके च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल-ज्ञान और निर्वाण के समय निसर्ग का समग्र तत्र अनहद आल्हाद का अनुभव करता है, नारकीय जीवो को भी क्षण भर के लिये शान्ति एव सुख का अनुभव होता है वह उनके अगाध विश्ववात्सल्य का ज्वलत उदाहरण है। इसी प्रकार से अष्ट महाप्रातिहार्य-युक्त समवसरण उस निसर्ग की उन्हे श्रेष्ठ श्रद्धाजलि है। वृक्ष उन्हें प्रणाम करते है, पक्षीगण उन्हे प्रदक्षिणा देकर नत-मस्तक होते हैं । उसके मूल मे भी उनका असीम प्राणी-वात्सल्य ही है । श्री अरिहन्त परमात्मा एक ही ऐसे विश्वेश्र हैं कि जो समस्त जीवो . को स्व-तुल्य समझते हैं । उस भाव का त्रिभुवन-स्वामित्व इसलिये ही ठोस मिले मन भीतर भगवान १०३
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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