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________________ प्रात. स्मरणीय गणधर भगवत श्री गौतम स्वामीजी की अनन्त लब्धियो के मूल मे भी परमात्मा श्री महावीर प्रभुजी के प्रति उनका उत्कृष्ट विनय निहित है। इस प्रकार शास्त्रो मे अनेक विधि से विनय-भक्ति की व्यापकता . व्याप्त है। . परमात्मा की दर्शन-पूजा करते समय साधक के हृदय मे परमात्मा के प्रति अपूर्व प्रेम उत्पन्न होता है तब वह परमात्मा के गुणो की स्तुति करने के लिये तत्पर होता है। स्तुति, स्तवन, चैत्यवन्दन अथवा प्रार्थना के द्वारा परमात्मा के अद्भुत गुणो का गान किया जाता है । भावोल्लास पूर्वक किये गये गुण-गोन से परमात्मा के प्रति प्रकृष्ट भक्ति-भाव जागृत होता है । परमात्म-भक्ति के द्वारा अनुक्रम से वचन एव असग अनुष्ठानो मे हमारा प्रवेश होता है और भक्त के मन-मन्दिर मे भगवान का पवित्र निवास होता है। प्रश्न-प्रीति-भक्ति का लक्षण क्या है ? उत्तर-जब परमात्मा के प्रति प्रीति-भक्ति प्रकट होती है तब अन्य समस्त पदार्थों की ओर का राग-प्रेम क्षीण होने लगता है, विपय-विमुखता एव कपाय-मदता मे वृद्धि होती है, क्षण-क्षण मे परमात्मा का स्मरण होता है, समग्र शरीर मे रोमाच होने लगता है, नेत्रो मे हर्पाश्रु उमड पडते हैं, मन मे अपूर्व शान्ति छा जाती है और अन्तःकरण निरभ्र गगन के समान निर्मल हो जाता है। शास्त्र में प्रीति-भक्ति अनुष्ठान के निम्नलिखित लक्षण बताये गये हैं प्रीति -यत्रादरोऽस्ति परम प्रीतिश्च हितोदया भवति कर्नु । शेपत्यागेन करोति यच्च, तत् प्रीति अनुष्ठानम् ॥ - ६० मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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