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________________ वह अपने प्रेम-पात्र को प्राप्त करने के लिये, उसे रिझाने के लिये क्याक्या नहीं करता ? सब कुछ करता है। . उसे प्राप्त करने मे कदाचित् आपत्तियो के पहाड़ टूट पडें, चाहे विपत्तियो के श्याम मेघ बरस पडें और उसका प्रेम-पात्र बनने मे कदाचित अनेक व्यक्तियो की शत्रुता मोल लेनी पडे, तो भी मानव सब कुछ सहन करने के लिये तत्पर रहता है । प्रेम एवं जीव-सृष्टि केवल मानव ही नही, अन्य जीव सृष्टि मे भी प्रेम मे पागल होकर जीवन को दाव पर लगाने वाले जीवो के असख्य उदाहरण देखने को मिलते हैं। पतगा दीपक की लो पर पागल होकर अपने प्राणो की आहुति तक दे देता है। चकोर पक्षी चाँद के लिये पागल होकर केवल उसकी प्रतीक्षा मे ही अपना जीवन व्यतीत करता है। मृग एव भुजग सगीत के स्वरो से आकर्षित होकर शिकारी एव मदारी के बन्धनो मे फंस जाते है। भ्रमर कमल-दल मे बन्द होने पर भी उसका स्नेह छोड कर बाहर निकलने के लिये उत्सुक नही होता। प्रेम के लिये द्रव्य, क्षेत्र, काल अथवा भाव अवरोधक नही होते। उसका प्रवाह तो निज प्रेम-पात्र के पीछे अबाध गति से प्रवाहित होता ही रहता है। सृष्टि मे विविध र प से प्रेम का दर्शन होता है। कही पति-पत्नी का प्रेम दृष्टिगोचर होता है, तो कही पिता-पुत्र के प्रेम का दर्शन होता है, कही सन्तान के प्रति माता का प्रेम अवलोकन करने मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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