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________________ उन्हें उत्कृष्ट भाव से स्मरण करने की सरल रीति उनकी उपकारक आज्ञा का त्रिविध एव त्रिकरण योग से पालन करना है । उस प्रकार करने से जीव गिनती के थोडे भवों में ही दुख रूप दुःख फलक एवं दुख परपरक ससार का उच्छेद करके शिव पद प्राप्त कर सकता है । श्री अरिहन्त परमात्मा के नाम आदि चारो निक्षेप समान उपकारी हे अपने अनन्य शरणागत को भव सागर मे से सकुशल मोक्ष मे ले जाने की क्षमता वाले हैं । उस सत्य मे अपनी प्रज्ञा को स्थिर करके समस्त मुमुक्षु आत्मा ग्राज वर्तमान समय मे भी इस जिन-मय जीवन का प्रमुक अशो मे अद्भुत रोमांचकारी अनुभव कर सकती हैं, यह निस्संदेह बात है । ૩૪ मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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