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________________ उदाहरणार्थ यदि हम घडे का विचार करें तो घडे की उत्पत्ति, उसका उपादान कारण मिट्टी, निमित्त कारण उडा, चक्र आदि और सहयोगी सामग्री मे उसके योग्य भूमि आदि का योग प्राप्त हो तब कुम्भकार के द्वारा होती है । ___ इसी तरह प्रत्येक मुमुक्षु साधक का साध्य मोक्ष अर्थात् आत्मा के पूर्ण, विशुद्ध स्वरूप को प्रकट करना है। इस मोक्ष रूपी साध्य की सिद्धि मे उपादान-कारण स्वय प्रात्मा है और प्रधान निमित्त श्री अरिहन्त परमात्मा है । आर्य-क्षेत्र, उत्तम कुल, उच्च जाति आदि सहयोगी सामग्री हैं । साधक यदि अपनी मोक्ष साधना मे इन कारणो का, उनकी सामग्री का यथार्थ रूप से उपयोग करे, प्रयोग मे लाये तो ही उसका साध्य मोक्ष सिद्ध हो सकता है। ___ ससार के समस्त जीव सत्ता से शिव-सिद्ध के समान है, अर्थात् प्रत्येक जीवात्मा अपने मोक्ष-शुद्ध स्वरूप का उपादान है, परन्तु जब तक उसे शुद्ध देव-गुरु स्वरूप पुष्ट-निमित्त-कारण प्राप्त न हो, तब तक उसमे उपादान कारणता प्रकट नही होती । निमित्त के योग से ही उपादान मे कार्य उत्पन्न करने की शक्ति प्रकट होती है ।* श्री अरिहन्त परमात्मा के आलम्बन से जो आत्मा निज आत्म स्वरूप मे लीन हो जाती है, उसकी उपादान कारणता प्रकट होती है अर्थात् उसकी आत्मा क्रमशः परमात्मा बनती है । बीज मे फल उत्पादन करने की शक्ति उपादान है, परन्तु वृष्टि आदि सामग्री का योग होने पर ही उसमे से अकुर प्रस्फुटित होते है और तत्पश्चात् क्रमशः फल रूपी कार्य सिद्ध होता है । उपादान प्रातम सही रे पुष्टालवन देव । उपादान कारण पणे रे, प्रगट करे प्रभु सेव ।। (पू श्री देवचन्द्रजी म) मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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