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________________ कार्य श्री अरिहत परमात्मा की भक्ति के प्रभाव से अत्यन्त सरल हो जाता है ।* रागी के प्रति राग आसक्ति है और वह ससार का मार्ग है । वीतरागी के प्रति राग भक्ति है और वह मोक्ष का मार्ग है । श्री अरिहन्त एव सिद्ध परमात्मा के अनन्त गुण, उनकी अचिन्त्य एव अकल्पनीय शक्ति, उनके द्वारा विश्व पर किये गये, किये जा रहे एव किये जाने वाले असख्य उपकार, उनकी लोकोत्तर करुणा एव पतितो को पावन, अपूर्ण को पूर्ण बनाने का उनका अकल्पनीय सामर्थ्य शास्त्रो एव ज्ञानी गुरुयो के द्वारा ज्ञात होता है, तब उस परमात्मा के प्रति हमारे हृदय मे एक अपूर्व प्रेम-भक्ति एव सम्मान अवश्य ही जागृत होता है और वह जागृत निष्काम प्रीति एव भक्ति ज्यो-ज्यो विकसित होती रहती है, त्यो-त्यो उसके अपूर्व आनन्द की हम अनुभूति कर पाते है। फिर तो उस दिव्य आनन्द के समक्ष भौतिक सुख तुच्छ एव निरर्थक प्रतीत होने लगते हैं। उसके प्रति हमारे मन का आकर्षण घटता जाता है । पाँच इन्द्रियो के सुख के लिये किये जाने वाले प्रयास बालको की विचारहीन धूलि-क्रीडा सदृश लगने लगते हैं । अात्मा को परमात्मा बनाने वाली एक परमात्म-भक्ति ही है-यह सत्य हृदय मे अविचल होने के पश्चात् परमात्मा को प्राप्त करने के लक्ष्य के अतिरिक्त भक्त के हृदय मे अन्य कोई अभिलाषा-कामना रहती ही नहीं। प्रभु की भक्ति मे लीन बने भक्त को परमात्मा की परमभक्ति ही अन्य प्रत्येक पदार्थ से अधिक श्रेष्ठ ज्ञात होती है, अत वह भक्त सासारिक सुखो के लाभ की गणना करके, उसे प्राप्त करने के उपाय के रूप मे परमात्मा के दिव्य प्रेम को कदापि नीचे उतरने नहीं देता। उसके हृदय मे तो प्रभु की भक्ति ही सर्वस्व होती है। जिनपूजनसत्कारयो. करणलालस. खल्वाद्यो देश विरति परिणाम (पू श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी म) देशविरति धर्म का प्राथमिक परिणाम श्री जिनेश्वर देव की पूजा एव उनका सम्मान करने की लालसा है। मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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