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________________ स्मरण कला , १५१ __ ७ जो विषय परिचित विषय के साथ किसी भी प्रकार के साहवर्य से जोड़ दिया जाता है वह अच्छी तरह याद रहता है।" ___ ८ जिस विषय का पुनरावर्तन होता रहता है, वह अच्छी तरह याद रहता है। - इन सिद्धान्तो का तात्पर्य यह है कि प्रथम तो जिस विषय मे निष्णात होना हो, उस विषय मे पूरा रस होना चाहिए। उसके लिए एकाग्रता सीखनी चाहिए; इन्द्रियो को बराबर कार्यक्षम बनाना चाहिए, उनका हो सके उतना उपयोग करना सीखना चाहिए। समझ को परिष्कृत करना चाहिए । अर्थात् विषय का स्मरण स्पष्ट हो वैसा दिमाग बनाना चाहिए, सीखी हुई वस्तुओ को मन के चोक मे बराबर व्यवस्थित करना चाहिए, उन्हे किसी भी विषय के साथ सयोजित कर लेना चाहिए और समय-समय पर उनका पुनरावर्तन करते रहना चाहिए। यदि इस प्रकार प्रयास किया गया तो निश्चित ही प्रगति होगी। ____'ज्ञान कण्ठा, दाम अण्टा' इस प्राचीन उक्ति का सार यही है कि जिस विद्या मे निष्णात होना हो वह कठस्थ होनी चाहिए अर्थात् उसके छोटे-बडे तमाम अग वराबर ध्यान मे रहने चाहिए। प्रगण पुस्तकें उपयोगी हैं पर हरेक निर्णय मे उनका उपयोग नहीं किया जा सकता । दूसरे प्रकार से कहे तो जो कार्य आनन फानन मे होता है उसके लिए प्रमाण पुस्तकों तक दौडना सम्भव नही । विद्या को तरोताजा रखने के लिए निम्नोक्त दोहा याद रखो। पान सडे, घोडा अडे, विद्या विसर जाय । तवा ऊपर रोटी जले, कहो चेला किरण न्याय ।। नागर बेल के पान सड रहे है, घोड़ा हठ पर चढ़ गया है, सीखी हुई विद्या भूली जा रही है और तवे पर रोटी जल रही है, प्रिय शिष्य । ऐसा होने का क्या कारण है ? गुरु द्वारा पूछे गये इन चार प्रश्नो का उत्तर उसका चतुर शिष्य एक ही वाक्य मे देता है कि-गुरुजी फेरा नही अर्थात् नागर बेल के पानो को फेरा नही इसलिए वे सड रहे हैं । घोड़े को फेरा नही, निरन्तर फिराया धुमाया नही इसलिए वह हठ पर चढ गया है, विद्या का पुनरावर्तन नहीं किया गया इसलिए वह भूलो जा रही है और तवे ऊपर की रोटी को भी
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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