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________________ स्मरण कला , १३५ ४५४४५४४५४४५४४५ - - ४६४४६४४६४४६४४६ ४७X४७४४७X४७X४७ ४८X४८X४८X४८X४८ ४९X४९X४९X४९X४९ -२८२४७५२४९ (नव अक) ५०X५०X५०४५०४५० -३१२५००००० ६०४६०४६०४६०४६० -७७७६००००० ६४X६४X६४X६४४६४ - १०७३७४१७२४ (दस अक) ७०X७०X७०X७०X७० -१६८०७००००० ८०X८०X८०X८०X८० | = ३२७६८००००० ९०X९०X९०X९०X९० = ५९०४९००००० १००X१००X१००X१००X१०० -१०००००००००० (ग्यारह अक) इसका सार यह है कि१ पाँच अंक की संख्या तक अन्त मे पाया हुअा अक ही पंचधात का मूल है। २ छह अक की किसी भी सख्या में पूर्व मे एक होता है। ३ सात अक की सख्या के अन्त मे ६ से ९ तक की सख्या मे पूर्व मे १ है, और ० से ५ तक की सख्या मे २ है। ४ आठ अ क को सख्या मे मात्र अन्त को सख्या की गिनती से विभाग हो जाए वैसा नही हैं, क्यो कि इसमे सख्याएं अधिक है। जिससे इस प्रकार को सख्याएं दो-दो बार पाती है । जैसे कि ११८८१५७६ और ६०४६६१७६ १४३४८६०७ और ६६३४३६ १७ आदि इसलिए इनका वर्गीकरण पूर्व के अको द्वारा करना चाहिये । पूर्व के अ को मे से दो अक इस कार्य के लिए पर्याप्त है। उस रीति से ११ से २० तक को सख्या मे आगे २ अ कित होते है और २४ को लेकर बाद की सख्या मे ३ य कित होते है । ५ नव अ क की संख्या मे भी इसी भाँति वर्गीकरण करते हुए १० से २८ तक की संख्या के पूर्व मे ४ है, ३० से ७६ तक की सख्या के पूर्व मे ५ होते हैं और ७७ से १६ तक की संख्या के आगे ६ होते है।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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