SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्मरण कला १२९ इस दोहे के आधार पर तुम चाहो जितनी बड़ी से बडी स ख्या का यत्र भी बना सकते हो। जैसे कि १५६२४ का यत्र बनाना है, तो पहले इसके तीन भाग करो ५२०८ यह उसका तीसरा भाग है, अर्थात् अ ५२०८ कोने के खानो मे ३ और एक अकित करना है। अर्थात् पहले खाने मे - ३ + ५२०९ इस प्रकार स ख्या लिखी जायेगी। अब सामने घटती हुई सख्या एक के बाद एक लिखते जागो जैसे कि ५२११ ५२०९ ५२०८ ५२०७ ५२०५ अब चार खाने खानी रहे, उनमे हरेक की दो-दो स ख्यायें तुम्हारे पास है, उससे घटती संख्या को भी पूरी कर सकोगे। जैसे कि ५२११ ५२०४ ५२०९ ५२०६५२०८ ५२१० ५२०७ ५२१२ ५२०५ अब सोलह खानो के सर्वतोभद्र यत्र का निर्माण करो [४८] ९ १६ २ ७ १६ २३ २ ७ ६ ३ १३ १२ ६ ३ २० १९ १५ १० ८ १ २२ १७ ८ १ ४ ५ ११ १४ ४ ५ १८ २१ इस यत्र का निरीक्षण ( तरीका ) इस प्रकार बताया गया है कि इस यत्र के समुदाय मे किसी मे भी उसके योग की : की अपेक्षा अधिक राख्या नही होती है। दूसरे इसमे हरेक पक्ति मे नव का चोक्क सी वर्गीकरण पृथक-पृथक प्रकार से रायोजित है जैसे कि (३४४
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy