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________________ २ स्मरण कला प्रतिज्ञा 'मै अपनी स्मरण शक्ति को अवश्य विकसित करूंगा।' __तिथि-मिति तारीख और नीचे के भाग मे यह पक्ति लिखो "प्राण टले पर प्रतिज्ञा न टले, यही वीर का धर्म है। इस पक्ति पर सुबह-शाम एक वार अवश्य मनन करो। दृढ निश्चय के बाद दूसरी जरूरत है प्रयास को । प्रबल पुरुषार्थ की । यह पुरुषार्थ सुव्यवस्थित होना चाहिए। प्रारम्भ मे भारी उत्साह और बाद मे उसकी विस्मृति, यह कार्य करने की सुचारु पद्धति नहीं है, वैसे ही किसी प्रकार की व्यवस्था अथवा पद्धति का अनुसरण करते हुए कार्य मे अधा-धुन्ध लग जाना भी कार्य करने की रीति नही है । वृक्ष तक पहुँचने की शर्त मे मन्दगति कछुए ने त्वरितगामी खरगोश को हरा दिया था, इसका मर्म बार-बार विचार मे उतार लेना चाहिए। इसलिये स्मरण शक्ति पुष्ट बनाने का दृढ निश्चय करने के वाद निरन्तर उसके लिए थोडा समय लगाना और उसके बीच जिन-जिन विषयो मे अभ्यास करना आवश्यक हो, वह नियमित रीति से करना बहुत जरूरी है। अभ्यास से जैसे-जैसे अधूरे और अटपटे कार्यो की भी सिद्धि हो जाती है। अभ्यास से मनुप्य एक डोर पर चल सकता है। अभ्यास के द्वारा लहरो से उफनते सागर मे मीलो तक तैरा जा सकता है और अभ्यास से प्राणहारी विष को भो पचाया जा सकता है । सुज्ञ पुरुषो की मूल्यवान् वारणी है अभ्यासेन स्थिर चित्तमभ्यासेनानिलच्युति । अभ्यासेन परानन्दो ह्यभ्यासेनात्मदर्शनम् । अभ्यास से चित्त को सुस्थिर किया जा सकता है। अभ्यास से ( शरीरस्थ ) वायु पर नियत्रण पाया जा सकता है । अभ्यास के द्वारा परम आनन्द की प्राप्ति हो सकती है और अभ्यास से प्रात्मदर्शन किया जा सकता है ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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