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________________ पत्र अठारहवाँ क्रम की उपयोगिता प्रिय बन्धु । व्यतीत हुए समय के प्रमाण में तुम्हारी प्रगति सन्तोषकारक है । तुम्हारा उत्साह और कार्य करने की लगन को देखकर सचमुच मे ही मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैं चाहता हूँ कि इस विषय मे दूसरे साधक भी तुम्हारा अनुकरण करे । इस पत्र मे तुम्हारा ध्यान वर्गीकरण की पूर्ति रूप क्रम की महत्ता के प्रति खीचना चाहता हूँ। (१) निम्नोक्त अ क क्रम मे है १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ६ । ये अंक व्युत्क्रम मे निम्नोक्त है२, ३, १, ४, ६, ५, ६, ७, ९ । ३, २, १, ६, ४, ५, ७, ९, ८ । ४, १, २, ३, ६, ७, ८, ५, ९ । ९, ७, ५, ८, ४, १, ३, २, ६ आदि । (२) नीचे की मख्या भी एक प्रकार से क्रम मे है ५, ६, ७, ८,६। ७३, ७५, ७७, ७९ । २५६, ३५६, ४५६, ५५६, ६५६, ७५६ । १२२४, १३२४, १४२४,१५२४, १६२४, १७२४ । __ ये सख्यायें जब व्युत्क्रम मे आती है यो वनती है७ ६, ५, ८, ९ । ७५ ७७, ७३, ७९ । ४५६, ६५६, २५६, ७५६, ५५६, ३५६ । १४२४, १६२४, १२२४, १७२४, १५२४, १३२४ ।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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