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________________ ८६ स्मरण कला कविता को याद रखने मे भी रेखाएं उपयोगी सावित होती कवितापाठ मे कहाँ विराम लेना चाहिये, यह ठीक-ठीक समझ लेना अपेक्षित है। यदि विचार के मुख्य केन्द्रो पर विराम लिया जायेगा तो वह बराबर सफल होगी । जैसे कि , मालिनी छन्द अनिल दल बजावे कुज मां पेसी वसी,. 'तरुवर वर शाखा - नृत्य नी धून चाले; विहगगण मधुरा सर थी गीत गाय, खल खल नादे निर्भरो ताल आये। ये पक्तियां इस पुस्तक के लेखक द्वारा लिखित 'अजन्ता का यात्री' नामक खण्डकाव्य से उद्धृत हैं। इन पक्तियो के वाचन से यह बात अच्छी तरह समझी जा सकती है कि इनका मुख्य उद्देश्य प्रकृति का सगीत बताना है, इसलिए उसका वर्णन उनमे क्रमशः किया गया है । इसलिए रेखाएं नीचे के क्रम से खीचनी चाहियेअनिलदल बजावे कुज मा पेसी वशी, तरुवर वर शाखा-नृत्य नी धून चाल, विहगगरण मधुरा सूर थी गीत गाय, खल खल नादे निर्भरो ताल आये। अनिल दल-वशी तरुवर-नृत्य विहगगण संगीत निर्भरो-ताल । वशो, नृत्य, गीत और ताल । वशी-अनिलदल बजावै कु ज मे प्रविष्ट वशी। . ' नृत्य-तरुवर वर शाखा नृत्य की धुन चले। गीत-विहगगरण मधुर स्वर से, गीत गाये। : ताल-खल खले शब्द से निर्भर ताल देते है। .. कविता को पहले अच्छी तरह समझ लेना चाहिए और फ़िर याद करने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा करने पर वह बिना रटे ही बरावर याद रह जाती है । छन्द की लयं आती हो तो याद रखने मे काफी सरलता हो जाती है । -
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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