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________________ ६२ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी जो गुरु ग्रहण किये हुए व्रतों को वारवार भंग करता हो, अनुकूल तथा प्रतिकूल परिपहों से चलायमान हो जाता हो, खानपान से आसक्त हो तथा भगवत् थाना का वारवार उल्लंघन करता हो वह कागज के समान कहलाता है। ऐसा व्यक्ति थोड़े बहुत पुण्य का उपार्जन करके देवगति को तो प्राप्त कर सकता है, किन्तु वह अपने अथवा दूसरे के आत्मा का कल्याण साधन नहीं कर सकता। वास्तव में पत्थर तथा काराज के समान दोनों ही प्रकार के गुरु कर्मावरण की वृद्धि ही करते है। ___ जो गुरु ससार रूपी समुद्र में स्वयं नाविक वन कर शिष्यों को सद्धर्म रूपी नाव में विठला कर भक्तजनों को पार करते हैं वह काष्ठ के समान कहलाते हैं। वह तत्व ज्ञान का भेद, स्व तथा पर का भेद, लोकालोक विचार, संसार के स्वरूप, कर्म बंध के कारण तथा उससे बचने तथा मुक्त होने के उपाय अपने आचरण द्वारा दूसरों को बतलाया करते है। जिस प्रकार काठ की नाव स्वयं पार होती हुई अपने अन्दर बैठे हुए पथिकों को भी सुरक्षित रूप से पार कर देती है, उसी प्रकार यह गुरु भी करते हैं। जिस प्रकार हम प्रत्येक वस्तु उत्तम से उत्तम • चाहते हैं, उसी प्रकार हमको गुरु भी उत्तम से उत्तम बनाना चाहिये। सोहनलाल-पिता जी! काष्ठ के समान उत्तम गुरु के लक्षण - मुझे और भी समझा कर बतलाइये, जिससे मेरे जैसा अवोध वालक उनको अच्छी तरह समझ सके । पिता-जिनेश्वर भगवान् की आज्ञानुसार पूर्ण रूप से स्वयं चलने तथा दूसरों को चलाने वाले, कनक तथा कामिनी से सब प्रकार से द्रव्य तथा भाव से बचने वाले, त्यागी, विशुद्ध तथा
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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