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________________ पितृ शिक्षा गृहणियां अपने चक्की चूल्हे के कार्य को समाप्त कर चुकी है। अजैन गृहणियां भी कुछ तो अपने अपने परिवार वालों को भोजन करा चुकी हैं और कुछ भोजन कराने की तयारी में हैं। शाह मथुरादासजी तो दिवाभोजी थे ही। अतएव वह तो भोजन कभी का समाप्त कर एक बार अपनी दूकान पर और भी हो आए हैं। इस समय वह अपने सजे सजाये कमरे में एक आरामकुर्सी पर बैठे हुए कुछ सोच रहे हैं। उनके चेहरे से गम्भीरता तथा बुद्धिमत्ता प्रकट हो रही है। इसी समय एक बालक ने कमरे में प्रवेश किया । बालक अत्यन्त स्वस्थ, सुडौल तथा सुन्दर था। उसकी आयु लगभग सात वर्ष की थी। उसने आते ही पिता मथुरादास जी के चरणों में अपना मस्तक झुका कर प्रणाम किया। पिता ने भी प्रेमपूर्वक उसके मस्तक पर हाथ फेरते हुये उसे उठाकर अपनी गोद में बिठला लिया। इसके पश्चात् उन्होंने उससे पूछा पिता-बेटा सोहन ! तुम्हारा अपनी पाठशाला में मन तो लगता है ? सोहन हां, पिताजी ! मेरा तो वहां खूब मन लगता है ? पिता-बेटा, तुम्हारे शिक्षक कौन हैं ? सोहन-एक विद्वान्, गुणी, सच्चरित्र तथा बुद्धिमान् ब्राह्मण हैं। पिता-उनके बोलने की शैली तथा. उनका चाल चलन कैसा सोहन उनकी वाणी अत्यन्त मधुर तथा सरस है। वह किसी के साथ भी बिना विचारे अविवेक से नहीं बोलते। वह स्वभाव से अत्यन्त गम्भीर हैं। वह किसी को नीचा दिखलाने
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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