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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी आकर माता तथा पिता को नमस्कार किया। माता ने उसको आशीर्वाद देकर प्रेम सहित उसके माथे पर विजयसूचक तिलक लगाया और उससे कहा "हे बेटा सोहनलाल ! तुम खूब मन लगाकर ऐसी विद्या पढ़ो कि जिससे तुस देश, समाज तथा जाति में नवजीवन एवं नवीन उत्साह उत्पन्न करके अपना तथा दूसरों का कल्याण कर सको।" यह आशीर्वाद देते समय उस माता को यह क्या पता था कि आज मैं बालक को जो कुछ आशीर्वाद दे रही हूं यह बालक अविष्य में उससे भी अधिक उन्नति करेगा। बालक को अत्यन्त समारोहपूर्वक गाजे बाजे के साथ पाठशाला लाया गया। यहां उसकी पट्टी का पोतन किया गया और उसके साथियों को मिष्टान्न दिया गया। इस प्रकार बालक सोहनलाल अपने जीवन में प्रथम वार पाठशाला आया। उसने सोत्साह पाठशाला में प्रवेश कर अध्यापक के चरणों में अपना मस्तक झुकाया और कहा सोहन-गुरु जी प्रणाम। अपने नवीन शिष्य का इतना सरल तथा विनयपूर्ण व्यवहार देख कर गुरु नी का हृदय आनन्द से भर गया। उन्होंने अपने नवीन छात्र की प्रेम सहित पीठ थपथपा कर उस से कहा गुरु जी-वत्स ! तुम शीघ्र विद्या सम्पादन करके यशस्वी बनो। गुरु जी ने इस प्रकार शुभ आशीर्वाद देकर बच्चे को अ आ इ ई आदि पट्टी पर लिख कर दे दिये। किन्तु नवीन
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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