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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी से सोहनलाल की अत्यधिक प्रशंसा करके उनके द्वारा सुनी हुई कथायों को अपनी माताओं तथा वहिनों को सुनाया करते थे। इस प्रकार उनके बाल श्रोताओं की दिन प्रति दिन वृद्धि होती जाती थी। माता लक्ष्मी देवी इस प्रकार अपने पुत्र की धार्मिक वाल लीला देख देख कर अपने हृदय में फूली न समाती थीं। पास पड़ोस की स्त्रियां भी प्रायः उनके पास आ आ कर उनको वधाई देती हुई कहा करती थीं "हे लक्ष्मी! तू बड़ी भाग्यवती है कि तुझको ऐसा अनमोल । लाल मिला है। भगवान सभी को ऐसा लड़का दे। लड़का क्या है, साक्षात् ऋषि का अवतार है।" ___अपने पुत्र के सम्बन्ध में ऐसी ऐसी बातें सुनकर तथा उसकी चतुमुखी प्रशंसात्मक वातें सुन कर उनका हृदय अत्यन्त पुलकित हो उठता था। इससे वह दुगने उत्साह से रात दिन वालक के हृदय में सदाचार के बीज बोती रहती थीं। उधर उनके द्वारा बोया हुआ बीज अनुकूल भूमि तथा वातावरण मे अंकुरित होकर एक अत्यंत विशाल वृक्ष का रूप धारण करने की तय्यारी कर रहा था। वास्तव में हमारे चरित्रनायक ने जो अपने जीवन मे अपना निर्माण करके अन्य सहस्त्रों जीवों का कल्याण किया, उसका आदि कारण उनकी माता लक्ष्मीदेवी द्वारा आरम्भिक जीवन में दी हुई शिक्षा ही थी। प्रत्येक माता का यह कर्तव्य है कि वह अपने बालक का उसी प्रकार निर्माण करे, जिस प्रकार माता लक्ष्मीदेवी ने सोहनलाल को बनाया था । -
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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