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________________ सर्प द्वारा छत्र करना भीमं वनं भवति तस्य पुरः प्रधान, सर्वे जनाः स्वजनतामुपयान्ति तस्य । कृत्स्ना च भू भवति तं निधिरत्नपूर्णा, यस्यास्ति पूर्वसुकृतं विपुलं नरस्य । जिस मनुष्य का पूर्व पुण्य भारी होता है उसके लिये वन प्रधान निवासस्थान हो जाता है, सभी मनुष्य उसके अपने जम बन जाते हैं और उसके लिए समस्त पृथ्वी कोष तथा रत्नों से भरी पूरी बन जाती है। मध्यान ढल चुका है। लगभग तीन बजे का समय है। सहस्रांशु सूर्य अपनी प्रखर किरणों से संसार को जलाने में असमर्थ होकर निराश भाव से अस्ताचल की ओर जाने लगे हैं। सम्बडियाल निवासी अपने अपने कार्यों में लग गये हैं। नगर में अच्छी चहल पहल है। ऐसे समय एक तीन मंजिल वाले विशाल भवन के एक सजे सजाए कमरे में एक सुन्दर पलंग पर एक एक वर्ष की आयु का बालक आनन्द से पड़ा सों रहा है। उसके ऊपर भारत की सर्वश्रेष्ठ चित्रकला वाला एक बहुमूल्य काश्मीरी दुशाला पड़ा हुआ अपूर्व शोभा दे रहा है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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