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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी बालक के जन्म के उपरांत उसका नाल काटा गया, किन्तु जिस समय धाय उस बालक के नाल को गाड़ने के लिये भूमि खोदने लगी तो उसके अन्दर से अशफियों से भरा हुआ एक लोटा निकला, जिस में सोने की पांच सौ मुहरें थीं। धाय पहिले तो उन मुहरों को देखकर एकदम घबरा गई। उसने सुना था कि भूमि के अन्दर रहने वाले धन की रक्षा नाग किया करते हैं। अतएव वह सोचने लगी कि ऐसा न हो कि कहीं से कोई नाग आकर उसपर आक्रमण कर बैठे। किन्तु जब उसको निश्चय हो गया कि इस लोटे के साथ कोई नाग नहीं है तो प्रथम तो उसने नाल को उस गड्ढे में दाब दिया और फिर वह प्रसन्न होती हुई उस लोटे को लेकर शाह मथुरादास जी के पास आई। उसने उनको लोटा देते हुए कहा "शाह जी, आपको दुगनी बधाई है।" शाह जी-दुगनी बधाई कैसी ? धाय-प्रथम बधाई तो पुत्र जन्मोत्सव की और दूसरी उसके ऊंचे भाग्य की है। बच्चे ने जन्म लेते ही यह सिद्ध कर दिया कि वह मुह में सोने का चम्मच लेकर पैदा हुआ है। जब मैं नाल गाड़ने के लिये गड्ढा खोद रही थी तो उसमें से अशर्फियों से भरा हुआ यह लोटा निकला । यह लोटा इस बच्चे का है। अतएव यह मैं आपको सौंपती हूं। अब आप जैसा उचित समझे इसका प्रयोग करें। शाह जी-"तेरी दोनों बधाइयां स्वीकार हैं। इसीलिए कवियों ने कहा है कि___'वृक्ष की छाया तथा पुण्यात्मा की माया साथ ही श्राती और साथ ही जाती है।' अच्छा अपने पारिश्रमिक की यह पांच स्वर्ण मुद्राएं लेजा।"
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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