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________________ आपके उत्तराधिकारी ४०३ पूज्य श्री काशीराम जी महाराज के शरीर की कांति अत्यन्त दैदीप्यमान थी। उनमे इतना अधिक तेज था कि उनके मुख पर दृष्टि गड़ाना कठिन था। उनका प्रताप भी इतना अधिक था कि उनके सामने सभी को झुकना पड़ता था । वास्तव मे उनके जैसा कान्तिमान साधु देखने में नहीं आया। शास्त्र मे आचार्य में जिन जिन गुणों का होना आवश्यक माना गया है, वह उन सभी गुणों से मंडित थे। पूज्य श्री काशीराम जी महाराज को जैन समाज के उत्थान का रात दिन ध्यान बना रहता था। उनका यह क्रम था कि वह प्रत्येक चातुर्माम मे बत्तीसों सूत्रों का स्वाध्याय किया करते थे। वास्तव में यह बत्तीसों आगम उनको बहुत कुछ कण्ठ याद हो गए थे। उन्होंने जैनियों में शीतला पूजन आदि मिथ्यात्वों को छुड़ा कर उनको सत्य मार्ग पर चलाया था। पूज्य काशीराम जी महाराज ने अपने आचार्यकाल में दो विशेष कार्य किये..' व्यर्थ व्यय को रोकना तथा पतितों का उद्धार करना । उन्होंने फजूल खर्ची को रोकने के लिये अनेक प्रयत्न किये। इस विषय मे श्राएने प्रथम पग यह उठाया कि बाराता को अपने यहां अधिक न ठहराने की प्रेरणा करके उनका अधिक ठहराना एक दम बन्द कर दिया। अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन क़ांफ्रेस तो व्यर्थव्यय रोकने के प्रस्ताव ही पास करके रह जाती थी, किन्तु आप अपने उपदेश द्वारा. उसके प्रस्तावों को कार्यरूप में परिणत करके समाज का हित सम्पादन किया करते थे। अनक बार आप बिरादरी के झगड़ों को भी मिटाया करते थे। आपके प्रयत्न द्वारा आपके बीचबिचाव से
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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