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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी करते थे, जिनका चलाया हुआ शक संवत आज भारत के प्रत्येक पञ्चांग का एक बढ़ आधार है। राजा शालिवाहन के प्रतापी पुन उस सक्त पूर्णमल का निर्मल चरित्र आज भारत के प्रत्येक गांव में गाया जाता है, जो नैष्टिक ब्रह्मचारी होते हुए भी विसाता द्वारा लांछित होकर पिता द्वारा मरवाया गया, किन्तु पिछले लन्सा के पुण्यके कारण उसके प्राण नहीं निकले और उसने पुनः स्वस्थ होकर न केवल अपनी आत्मा का कल्याण किया, वरन अपनी विमाता तथा पिता का भी उद्धार किया। धर्म की रक्षा के लिए अपने सस्तक को कटाने वाले वीर हकीकतराय धर्मी भी पञ्जाब के ही निवासी थे। सिम्खों के दसवें गुरु गोविन्दसिंह के दोनों लाडले पुत्रों को इसी. नगर के पास,सरहिंद में जीवित ही दीवार में चिनषा दिया गया था। उन्होंने प्राण देना स्वीकार किया, किन्तु अपने धर्म को न छोड़ा। सिक्खों के दसों गुरुओं ने पञ्जाब में जन्म लेकर अपने साहस.तथा पुण्य के प्रभाव से समस्त संसार को आश्चर्यचकित कर दिया। महाराज रणजीतसिंह ने भी पनाव में जन्म लेकर अपने जीते जी न तो कावुल के पठानों को सिर उठाने दिया और न अंग्रेजों को पञ्जाव की भूमि पर पैर रखने दिया। .. लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के साथ साथ भारत को, स्वराज्य के मंत्र से दीक्षित करने वाले पञ्जाबकेसरी लाला, लाजपतराय भी पञ्जाब के ही निवासी थे। लाला जी ने अपने निर्वासित जीवन में अमरीका में इतनी अधिक ख्याति प्राप्त कर ली थी कि कुछ क्षेत्रों में उनको अमरीका के राष्ट्रपति पद के चुनाव में खड़ा करने तक के सम्बन्ध में चर्चा की जाने लगी
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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