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________________ महाप्रयाण ३८९ सनातन धर्मी पुराणों में जो कुछ व्यक्तियों को अमर माना गया है, यह बात उनकी ही युक्ति की कसौटी पर चढ़ाई जाने पर ठीक नहीं उतरती। वहां परशुराम, हनुमान, अश्वत्थामा, कृपाचार्य, कृतको, मार्कण्डेय ऋषि तथा काकभुसुण्ड जी इन सात व्यक्तियों को अमर माना गया है। आल्हाखण्ड के गाने वाले आल्हा के भक्त आल्हा को भी अमर मानते है। जाहर दीवान के भक्त जाहर पीर को अमर मानते हैं। इस प्रकार इस संसार में यद्यपि अमर कहलाने वालों की संख्या कम नहीं है, किन्तु उनकी अगरता केवल उनके भक्तों की कल्पना मात्र से अधिक कुछ भी नहीं है। फिर अमरता के सिद्धान्त के यह उपासक सृष्टि के अन्त में उन सबकी मृत्यु भी मानते हैं। ऐसी अवस्था में उनकी यह अमरता भो चिरस्थायी नहीं ठहरती । जैन सिद्धान्त में तो द्रव्य का लक्षण ही सत् माना गया है “सद्व्य लक्षणम् ।" फिर इस सत् की परिभाषा मे कहा गया है कि __"उत्पाहव्ययधोव्ययुक्त सत् ।” जिसमे उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य हों वह सत् है । अर्थात् जैन सिद्धान्त के अनुसार जिस किसी भी वस्तु का अस्तित्व है, उसमे उत्पत्ति तथा विनाश का रहना आवश्यक है और फिर भी ध्रौव्य के रूप में उस वस्तु के गुण उस की प्रत्येक दशा मे बने रहते है। ___ वास्तव मे उत्पत्ति तथा विनाश का नाम ही पर्याय बदलना है। सोने के कड़े के कुण्डल बनवा लेने से उसकी कड़ा रूप पर्याय नष्ट होकर कुण्डल रूप पर्याय बन जाती है और फिर भी उन दोनों पर्यायों में उस सोने का पीलापन तथा भारीपन
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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