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________________ आत्म शक्ति ३७७ एक बार आप उपाश्रय में बैठे थे कि एक अन्य स्थान के व्यक्ति ने आपके दर्शन करके कहा । "महाराज! मुझे लाहौर जाना है। मंगलीक सुना दीजिये।" इस पर आप बोले "कहीं जाने का कुछ काम नहीं। यहां उपाश्रय में ही बैठ और धर्म ध्यान कर।" इस पर वह व्यक्ति बोला "महाराज ! मुझ पर ऐसा भयंकर मुकदला चल रहा है कि उसमें जेल या फांसी कुछ भी हो सकती है। मैं जमानत पर छूटा हुआ हूं। इस लिये मेरा वहां जाना आवश्यक है। इस पर आपने उत्तर दिया __ "भोले ! तब तू आपत्ति के मुख में जाता ही क्यों है ? तुझे वहां जाने की क्या आवश्यकता है ? तू यहीं बैठ और सामायिक कर।" - यह सुन कर वह वहीं बैठ गया और सामायिक ले कर अपने घर भी नहीं गया। अगले दिन उसको उसके वकील का तार मिला कि "तुमको अदालत ने साफ छोड़ दिया है।" ___x xxx आपके शिष्य तपस्वी मुनि श्री गैंडे राय जी महाराज भी लब्धिधारी मुनि थे। एक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक लड़का उनको गोचरी जाते समय प्रति दिन छेड़ा करता था। वह कभी उनके श्वेत वस्त्रों का तथा कभी उनकी मुख वस्त्रिका का मखौल उड़ाया करता था। किन्तु श्री गैंडेराय जी महाराज उसको कभी भी
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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