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________________ ३६८ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जो ___ "अरे । वह देखो ! बच्चे उड़ाने वाले जैन साधु गांव की ओर जा रहे है । इनको गांव में घुमने से रोकना चाहिये।" आपस मे इस प्रकार परामर्श करके उन तीनों ने आकर पूज्य महाराज को सैकड़ों गालियां देते हुर गांव में जाने से रोका। इतना ही नहीं, उन्होने पूज्य महाराज की झोली को भी छीनने का प्रयत्न किया। किन्तु पूज्य महाराज वल मे उनसे कम नहीं थे। उन्होने बलपूर्वक अपनी झोली को ऐसी बढ़ता से पकड लिया कि वह उनसे झोली न छीन सके और खिसिया कर रह गए। इस पर पूज्य महाराज उनसे वाले ___ "भाई ! क्यों जबरदस्ती करते हो। तुम नहीं चाहते तो हम गांव मे नहीं जावेगे।" यह सुन कर वह लोग आप लोगों को छोड़ कर गांव मे लौट गए और पूज्य श्री वही जगल मे बनी हुई कुछ झोपड़ियों मे जा कर ठहर गए, क्योंकि उस समय दिन छिपने ही वाला था और उस गांव को छोड़ कर दूसरे गांव मे दिन ही दिन में पहुंच जाना सम्भव नहीं था। इसी लिए आप जंगल के कुछ छप्परों मे ठहर गए। उधर वह तीनों व्यक्ति जव अपने घर पहुंच कर आराम करने लगे तो उनमे से जिस व्यक्ति ने पूज्य श्री को सबसे अधिक गालियां दी थी, उसकी गर्दन को कोई अज्ञात व्यक्ति रात मे इस प्रकार कोट गया कि हत्यारे का किसी प्रकार पता न लग सका। उसके शेष दोनों साथियों ने जब इस समाचार को सुना तो वह बहुत घबराए । उनके मन मे विश्वास हो गया कि यह उन्हीं महात्मा को सताने के पाप का दण्ड है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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