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________________ ३६४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अजमेर के अखिल भारतीय मुनि सम्मेलन का समाचार जब अमृतसर मे पज्य श्री सोहनलाल जी महाराज को सुनाया गया तो वह सरल भाव से कहने लगे "मुझे तो वृद्धावस्था के कारण यह आचार्य पद ही भार स्वरूप प्रतीत हो रहा है। अव यह प्रधानाचार्य का नवीन उत्तरदायित्व तो मुझे और भी भार में दवा देगा। किन्तु एकता के लिये चतुर्विध संघ की सहायता से सहने की शक्ति प्रा सकती है।" संवत् १८६० मे आपने अमृतसर में उत्तर प्रदेश सिलसली निवासी हुकुमचन्दजी बैरागी को दोक्षा दिलाकर उन्हें युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज का शिष्य बनाया। हुकुमचन्द जी केहरी श्रावक के पुत्र थे और जन्म से अग्रवाल जैन थे। संवत् १६६१ में वसंत पंचमी के अवसर पर आपने अमृतसर में जयपुर राज्य के निवासी सुदर्शन बैरागी को दीजा दी। सवत् १६६१ की माघ सुदी पंचमी को आपने अमृतसर मे दीक्षा देकर उनको मुनि पण्डित शुक्लचन्द जी महाराज का शिष्य बनाया। यह आगे चलकर बड़े भारी तपस्वी प्रमाणित हुए। इसके पश्चात् कुछ मास के बाद आपका स्वास्थ्य फिर निर्बल पड़ने लगा । किन्तु अजमेर के साधु सम्मेलन के उत्साह के कारण समाज के कार्य मे लेशमात्र भी शिथिलता नहीं आई । पूज्य महाराज अपने स्वास्थ्य पर ध्याम न देते हुए भी अपने उपदेश द्वारा सब का वराबर कल्याण करते रहे । __अजमेर सम्मेलन द्वारा तिथि निर्णय करने का काम जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी कान्फ्रेंस को सौंप दिया गया था।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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