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________________ प्रधानाचार्य ३५७ श्रमण भगवान महावीर स्वामी के मोक्ष के बाद सर्व प्रथम पटना में, फिर लगभग ३०० वर्ष बाद मथुरा में और वीर निर्वाण संवत् १८० में काठियावाड़ की राजधानी वल्लभी नगरी में श्री देवर्द्धि गणी क्षमाश्रमण के नेतृत्व में जैन साधु सम्मेलन हुआ था। इस वल्लभी सम्मेलन में ही जैन सूत्र ग्रन्थों को लिपिबद्ध किया गया था। वल्लभी नगरी के बाद लगभग १५०० वर्ष के अन्तराल से समस्त आर्यावर्त के स्थानकवासी जैन समाज के सभी गच्छ, पेटासम्प्रदाय आदि के प्रतापी पूज्यवर जैन समाज के उत्थान तथा ज्ञान दर्शन चारित्र की वृद्धि, विचार विनिमय तथा बंधारण नियत करने के लिए अजमेर की भूमि पर एकत्रित हुए। इस समय समस्त भारत मे स्थानकवासी सम्प्रदाय के मुनियों की संख्या यह थी मुनि आर्या जी कुल संख्या - ४६३ ११३२ १५६५ उनमें से अजमेर सम्मेलन में उपस्थिति निम्नलिखित थीउपस्थित मुनि उपस्थित आर्या जी प्रतिनिधि मुनि २३८ ४० ७६ सम्मेलन चैत्र कृष्णा दशमी बुधवार संवत् १६८६ को प्रातःकाल ८ बजे प्रारम्भ हुआ! अंग्रेजी हिसाब से इस दिन ५ अप्रैल १६३३ थी। यह अखिल भारतीय मुनि सम्मेलन लाखनकोटरी मर्मयों के नौहरे में भीतर के चौक के वट वृक्ष के नीचे किया गया था। कुछ थोड़ी सी खुली बैठकों के बाद सम्मेलन को गृहस्थों के लिये बंद कर दिया गया। अन्त में
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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