SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 385
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४७ पञ्चाङ्ग सम्बन्धी विचार उस पर ध्यान देना है। मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप वर्तमान समय की स्थिति को देखते हुए यदि पत्री का प्रचलन स्थगित कर देने की कृपा करे तो संघ में शांति स्थापित हो जावेगी।" किन्तु आचार्य श्री ने पत्री के प्रचलन को स्थगित करना उचित न समझा और सघ मे मतभेद बना ही रहा । तथापि कुछ लोग संघ मे एकता स्थापित करने का प्रयत्न अब भी करते रहे। __ पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज अपने समय के एक महान् एवं प्रधान सन्त थे। वह समाज मे क्रांति करना चाहते थे। उनकी इच्छा थी कि जैन समाज ब्राह्मण पञ्चाङ्गों के बन्धन से मुक्त होकर इस प्रकार आचरण करे कि जैन ज्योतिष का स्वतत्र महत्त्व फिर स्थापित हो जावे । किन्तु उन्होंने देखा कि जनता प्राचीनता के पक्ष को छोड़ना नहीं चाहती और इधर शास्त्रानुसार पत्री प्रचारक दल प्रबल शक्तिशाली होता हुआ भी एकता का विरोधी नहीं था । इसी कारण पत्री तथा परम्परा पक्ष के बढ़ते हुए मतभेद को दृष्टि मे रखते हुए अखिल भारतीय श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेस ने अपनी जेनरल कमेटी की एक बैठक २६ जून १६२६ को संवत् १६८८ में की। इसमे उसने प्रस्ताव नं० ११ के अनुसार निश्चय किया कि कुछ निश्चित व्यक्तियों का एक डेपूटेशन अमृतसर में श्री पूज्य महाराज की सेवा मे उपस्थित हो कर उनसे इस विषय पर वार्तालाप करे । कांफ्रेस ने इस डेपूटेशन का निम्न लिखित सात श्रावकों को सदस्य चुना १ सेठ गोकुलचन्द जी, दिल्ली २ सेठ वर्द्धमान जी, रतलाम
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy