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________________ ३३६ पञ्चाङ्ग सम्बन्धी विचार - "जब हम लोग घग्घर नदी से पंजाब की ओर जाएंगे तो अपने अपने चातुर्मास जैन तिथि पत्र के अनुसार किया करेंगे, किन्तु जब हम घग्घर नदी के दूसरी ओर जाया करेंगे तो अपने चातुर्मास पुरानी परिपाटी पर ही किया करेगे। क्योंकि उधर पुराने विचार रखने वालों की संख्या अधिक है।” इस प्रकार समाज मे पत्री परम्परा का एक भारी संघर्ष खड़ा हो जाने पर जालधर मे मुनियों का एक सम्मेलन किया गया । इस सम्मेलन मे आर्या पावती जी महाराज तथा गणी उदयचन्द जी महाराज का जैन तिथि पत्र के सम्बन्ध मे शास्त्रार्थ हुआ। इस शास्त्रार्थ मे अंतिम रूप से यह निश्चिय किया गया कि__ "सभी जैन मुनि अपना अपना चातुर्मास केवल चार महीने का ही करें। क्योंकि एक तो जैन शास्त्रों के अनुसार लौंद सभी महानों में नहीं हो सकता और दूसरे जेन मुनियों का चातुर्मास चार मास से अधिक का कभी भा नहीं होता।" किन्तु कुछ मुनियों तथा आर्याओं ने इस निर्णय को भी न माना और पत्री तथा परम्परा इन दोनों दलों में कोई भी सामंजस्य अन्तिम रूप से न हो सका । मुनि श्री मिश्रीलाल जी महाराज ने तो इसी भावना के वशवर्ती होकर जैन तिथि पत्र के विरुद्ध सत्याग्रह भो किया, किन्तु उसमें उनको सफलता नहीं मिली। __ जब पत्री का विरोध करने वालों का पक्ष पर्याप्त निर्बल पड़ने लगा तो वह सर मोती सागर तथा देवतास्वरूप भाई परमानन्द जी एम०ए० जैसे प्रभावशाली गृहस्थों को पूज्य श्री के पास अमृतसर लाए। उन्होंने जब पूज्य श्री के साथ इस
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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