SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चाङ्ग सम्बन्धी विचार ३३७ उन दिनों एक ओर तो पूज्य श्री की रोगपरिचर्या की जा रही थी और दूसरी ओर उनका बनाया हुआ नया जैन पञ्चांग मुनियों में चर्चा का विषय बना हुआ था। पूज्य श्री का आगमाभ्यास गंभीर तथा तलस्पर्शीथा। जैन ज्योतिप के तो आप प्रकाण्ड पंडित थे। चन्द्र प्रज्ञप्ति आदि सूत्रों के रहस्य उनके लिये हरतामलकवत थे । यह पीछे बतला दिया जा चुका है कि पूज्य सोहनलाल जी महाराज ने अपनी युवराज अवस्था में पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज तथा मुनि संघ की इच्छानुसार नवीन जैन तिथिपत्र के निर्णय के कार्य को अपने हाथ में लिया था। उन्होंने आगम अन्थों, सूर्य प्रज्ञप्ति तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति आदि ग्रन्थों का गंभीर अध्ययन करने के पश्चात् एक नवीन जैन पञ्चांग की रचना भी कर दी थी। किन्तु जैग पञ्चांग बन जाने पर भी आपने उसको कार्यरूप में परिणत करने के लिये कोई आज्ञा संवत् १९७२ तक भी प्रचारित नहीं की। कुछ समय बाद श्री उपाध्याय आत्माराम जी महाराज इस सम्बन्ध में पूज्य श्री के साथ विचार विनिमय करने के लिये अमृतसर पधारे। आपने पूज्य श्री को वन्दना करके उनसे निवेदन किया' "गुरुदेव ! आपने जैन आगमों के सूक्ष्म तत्वों का गहन पारायण करके जैन पञ्चांग का निर्माण किया है, किन्तु मारा सघ अभी तक प्राचीन सनातनधर्मी शैली से बने हुए पञ्चांगों के अनुसार ही अपने चातुमास आदि मना रहा है, जो उचित नहीं है। मेरी आप से प्रार्थना है कि आप आचार्य के नाते अपने बनाए हुए जैन तिथि पत्र को प्रचारित करने की आज्ञा संघ को दें।" इस पर पूज्य महाराज ने उत्तर दिया
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy