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________________ ३३० प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी शुक्लचन्द्र-खैर, आपके इस अनुरोध को मै स्वीकार करता हूं। इस प्रकार सरगोधा की उस महिला को आश्वासन देकर शुक्लचन्द्र जी अपनी दूकान पर अवोहर मंडी मे रहने लगे। किन्तु जब उनको उनके चाचा ने विवाह के लिये गांव भेजने के लिये जबरदस्ती रेलगाड़ी में बिठला दिया तो उनको अपने भावी जीवन के सम्बन्ध में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता हुई। शुक्लचन्द्र जी अपने चाचा द्वारा रेल मे जबर्दस्ती विठलाए जाकर अबोहर से तो चल पड़े. किन्तु गाड़ी के भटिंडा आने पर वह उसमे से उतर पड़े। उन्होंने अपने टिकट को फेक कर वहां से सरगोधा का दूसरा टिकट लिया। सरगोधा में उस महिला ने आपकी बहुत अधिक खातिर की। वास्तव मे वह महिला एक धनी विधवा थी और उसके एकमात्र संतान उसकी एक पुत्री थी, जिसका विवाह शुक्लचन्द्र जी के साथ करके उनको वह घरजमाई बना कर रखना चाहती थी। इसीलिये शुक्लचन्द्र जी के जाने पर उसने उनके ऊपर खूब खर्च करना प्रारम्भ किया। किन्तु उस विधवा का देवर उसकी सम्पत्ति का अपने को उत्तराधिकारी समझता था। अतएव वह उसकी घर जमाई रखने की योजना के विरुद्ध था। इसीलिये वह शुक्लचन्द्र जी से भी खूब जलता था। _ आरम्भ मे तो शुक्लचद्र जी ने उसके इस व्यवहार की उपेक्षा की, किन्तु बाद में जब आप को पता चला कि वह महिला मांसाहारिणी है तो आप को उस से घृणा हो गई। अब आपने उसके द्वारा दिया हुआ द्रव्य उसको वापिस करके सरगोधा छोड़ दिया। ,
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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