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________________ ३१२ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी श्वेताम्बर आगमों मे जो जिनकल्पी का विधान किया गया है वह उनको कम से कम ग्यारह अंग का पूर्ण तथा वारहवें अग में दशवे पूर्व की तीसरी वस्तु तक का पूर्ण ज्ञान तथा प्रथम संहनन होना आवश्यक है। अस्तु आजकल के दिगम्बर जैन मुनियों को जिनकल्पी नहीं कहा जा सकता। दिगम्बर आचार्य जिन सेन कृत आदि पुराण के सर्ग ११, श्लोक ७३ में भी । साधुओं के जिन कल्पी तथा स्यविर कल्पी दो भेद मानकर जिन कल्पी मे ज्ञान की विशेषता को माना गया है।। इसके अतिरिक्त दिगम्बर साधुओं के लिये कमण्डलु, पुस्तक, कलस, दवात, काग़ज़, रूमाल, पट्टी आदि रखना भी अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त दिगम्बर मुनि सर्दियों मे घास के अन्दर दुबक कर सोते है। घास मे तो जीवजन्तुओं की संभाल भी नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में उनके द्वारा उन जीवो की हिंसा होना अनिवार्य है। फिर दिगम्बर शास्त्रों मे दिगम्बर मुनि को नवम गुणस्थान तक पुरुष, स्त्री तथा नपु सक इन तीनों वेद का उदय माना है । अतएव उसको प्रयोग से दवा कर जितेन्द्रिय वनना पड़ता है। इस प्रकार के अन्य भी अनेक दिगम्बर ग्रन्थों मे मुनियों के वस्त्रों के पक्ष में लिखा हुआ मिल सकता है ! स्त्री मुक्ति गोम्मटसार की गाथा ३८८ तथा ७१४ आदि कई स्थानों मे स्त्री के लिये क्षपक श्रेणी तथा अवेदिपन आदि का उल्लेख किया गया है। गोम्मटसार कर्म कांड मे कहा गया है
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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