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________________ ३१० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी जावेगा। इसी कारण दिगम्बर मान्यता के अनुसार तीर्थंकरों के अशोक वृक्ष, सिंहासन, छत्र, चमर, कमल आदि अष्टप्रतिहार्य तथा समोशरण रूप परिग्रह होते हुए भी उनको ममत्व के अभाव में निष्परिग्रही माना जाता है। इसके अतिरिक्त तत्वार्थ सूत्र में निम्नलिखित सूत्र में साधुओं के भेद बतलाए गए हैं उनसे भी यही पता चलता है । उक्त सूत्र यह हैपुलाकवकुशकुशोलनिन्थस्नातका निग्रन्थाः । तत्वार्थसूत्र, अध्याय ६, सूत्र ४६ निग्रन्थों के पांच भेद हैं-पुलाक, बकुल, कुशील, निग्रन्थ पोर स्नातक। सर्वार्थसिद्धि मे, उनके लक्षण करते हुए बतलाया गया है कि उत्तर गुणों का पालन करने की अभिलापा होते हुए भी जिनके व्रत कभी कभी ही पूर्ण होते हों, वह अविशुद्ध चरित्र वाले पुलाक के समान पुलाक मुनि होते हैं ! जो अपने व्रतों का पूर्ण पालन करते हुए भी शरीर उपकरण को सजाने के लिये यत्न करते हुए अपने मुनि परिवार में मिले रहते हैं-वह मोहग्रस्त बकुश मुनि कहलाते हैं। वकुश का लक्षण पूज्यपाद स्वामी ने सर्वार्थसिद्धि मे निम्नलिखित शब्दों में किया है नैन्थ्य प्रतिस्थिता अखण्डितव्रताः शरीरोपकरणविभूषानुवर्तिनोऽविविक्तपरिवारा मोहशवलयुक्ता बकुशाः । कुशील दो प्रकार के होते हैं--प्रतिसेवना कुशील तथा कषाय कुशील ।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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