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________________ ३०४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी जी अमृतसर के ओसवाल थे। पूज्य श्री ने उसे मुनि श्री काशीराम जी महाराज का शिष्य बनाया। आप कपूरथला से बिहार कर के जंडियाला होते हुए अमृतसर पधारे । आपने अपना सवत् १६६२ का चातुमाग्न अमृतसर में ही किया । अमृतसर के चातुर्मास के समय यापन लाला ईश्वरदास वैरागी को दीक्षा दी। लाला ईश्वरदास अत्यन्त शक्तिशाली व्यापारी थे। वह अोलवाल दूगड़ थे। उनकी दीक्षा अत्यन्त त्याग तथा वैराग्य का उदाहरण है। उनको मुनि श्री काशीराम जी महाराज का शिप्य बनाया गया। दीक्षा पूज्य श्री ने स्वयं दी। __ अमृतसर के इस चातुर्मास के बाद ग्राप वहां से विहार कर गये । किन्तु आपके चरणो में वेदना हो गई। आपको हवा लग जाने से वायु रोग होगया, जिससे आपके हाथ पर कांपने लगे। __ अमृतसर के श्री संघ को जब पूज्य श्री के शरीर मे इस असाव्य रोग के हो जाने का समाचार मिला तो यहां बड़ी भारी चिन्ता हो गई। अव वहां के मुख्य मुख्य श्रावक लाला नत्थू शाह, जगन्नाथ, राधा किशन, लाला कृपाराम, नारायण दास, वसंता मल, जुहारे शाह, माधो शाह, लाला हुकमा शाह, लाला फग्गू शाह, भगवान दास, लाला दुनी शाह तथा संत राम आदि सव एकत्रित हो कर जडियाला आए। यहां आप लोगों ने महाराज से निवेदन किया "गुरुदेव । आपका शरीर अव विहार करने योग्य नहीं रहा है। अस्तु अब आपको आपत्ति धर्म का पालन करते हुए विहार करना बंद कर देना चाहिये और अमृतसर मे स्थायी रूप से निवास करना चाहिये। आप जानते हैं कि अमृतसर के श्री संघ
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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