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________________ शास्त्रार्थ नाभा तावद्गर्जन्ति शास्त्राणि, जम्बुकाः विपिने यथा । यावन्न गर्जत्यग्र, सत्यसिद्धान्त केसरी ।। विभिन्न शास्त्रों के अनुयायी वन में गीदड़ों के समान तभी तक गर्जा करते हैं, जब तक सत्य सिद्धान्त रूपी सिंह श्राकर गर्जना नहीं करता। श्री पूज्य सोहनलाल जी महाराज दिल्ली से विहार करके सोनीपत, पानीपत तथा करनाल में धर्म प्रचार करते हुए फाल्गुण मास में कैथल पहुंचे। वहां से समाना होते हुए आप नाभा पधारे। जिन दिनों श्री पूज्य महाराज नाभा पधारे तो श्री वल्लभविजय जी संवेगी भी नाभा से ही थे..। आपने तत्कालीन नाभा नरेश श्रीमान हीरासिंह जी के पास सायंकाल के समय दरबार मे जा कर आशीर्वाद दिया। आपने उनके सन्मुख एक लिखित निवेदन पत्र उपस्थित किया कि उनको स्थानकवासी मुनिराज विशेपकर पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज के साथ शास्त्रार्थं करने दिया जावे। आपने उनके सन्मुख छै प्रश्न उपस्थित करके 'निवेदन किया कि मुझे इन छै प्रश्नों का उत्तर स्थानकवासी साधुओं से दिलवाया जावे।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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