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________________ २६४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज को आचार्य पद पर स्थापित किया गया। तब से ही पत्रों मे आपको श्री पूज्य सोहनलाल जी महाराज लिखा जाने लगा। आपकी देखरेख मे श्री संघ और भी अधिक उत्साह के साथ अपने धार्मिक कार्य करने लगा, श्री पूज्य सोहनलाल जी महाराज भगवान महावीर स्वामी के उत्तराधिकारी श्री सुधर्य स्वामी के वे पाट पर बैठे। पटियाला के आचार्य पद महोत्सव के बाद श्री पूज्य सोहनलाल जी महाराज वहां से विहार करके राजपुरा, अम्बाला, थानेसर, करनाल, पानीपत तथा सोनीपत में धर्म प्रचार करते हुए दिल्ली पधारे। संवत् -१६५६ का अपना चातुर्मास भी आपने दिल्ली में ही किया। यहां आपने रत्लचन्द वैरागी को भी दीक्षा दी। दिल्ली में धर्म प्रचार करके आपने चातुर्मास के बाद उत्तर प्रदेश की ओर विहार किया। ___ आप खेकड़ा, बागपत, बड़ौत, वामनोली, बिनोली तथा अलम में धर्म प्रचार करते हुए कांधला पधारे । संवत् १९६० का चातुर्मास आपने कांधला में ही किया। इस चातुर्मास के बाद मार्गशीर्ष कृष्ण सप्तमी संवत् १९६० को आपने कांधले में तीन दीक्षाएं दीं। उनमें एक पसरूर निवासी थे। यह रहीस लाला गैंडेराय साहिबे दूगड़ के भतीजे तथा लाला गोविंदशाह के पुत्र थे। इनकी माता का नाम श्रीमती लक्ष्मी देवी था। इन बैरागी का नाम काशीराम जी दूगड़ था। उनको तेरह वर्ष की आयु में वैराग्य हो गया था। छै वर्ष तक उनका घर वालों के साथ झगड़ा रहा । वास्तव मे पूज्य महाराज को यह एक अपूर्व रत्न मिला। आगे चलकर यह समाज का वड़ा भारी आधार सिद्ध हुआ, जिस से पूज्य श्री सोहनलाल जी ने उसे अपना उत्तराधिकारी वनाया।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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