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________________ प्राचार्य पद समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभयो। नाणेणय सुणी होइ, तवेण होई तावसी ।। उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन २५, गाथा ३२ समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है तथा तप से तपस्वी वना जाता हैं। युवाचार्य मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज चातुर्मास के पश्चात् लुधियाने से विहार करके वांगर तथा खादर देश में धर्म प्रचार करते हुए दिल्ली पधारे। यहां आपने श्रावक से कुछ सूत्र धारणा करी कराई। उन दिनों दिल्ली में सूत्रों के विद्वान अच्छे गृहस्थ थे। आजकल भी दिल्ली मे श्री मोहनलाल जी बत्तीसों सूत्र के जानकार है। युवाचार्य जी दिल्ली से विहार करके बड़ौत, बामनौली, वीनोली, ऐलम, कांधला, तीत्तरबाड़ा, पानीपत, करनाल, अम्बाला, रोपड़, बलाचौर तथा जैजों में धर्म प्रचार करते हुए होशियारपुर पधारे। आपने संवत् १६५३ का चातुर्मास होशियारपुर में किया। चातुर्मास के बाद आप जालंधर, कपूरथला, जडियाला,
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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