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________________ २७४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी इन दोनों का हांसी में एक साथ चातुर्मास होने से दोनों ओर से अपना अपना प्रचार किया जाने लगा। मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज के साथ मुनि श्री लालचंद जी महाराज भी थे। इस समय स्थानकवासी ग्रहस्थों में उत्तर प्रदेश कांधला निवासी लाला घमंडीलाल जी हांसी आए हुए थे। तेरापथी गृहस्थों में बीकानेर राज्य के नगर सरदार शहर के सेठिया लोग आए थे। दोनों पक्ष की ओर से पर्याप्त विज्ञापन निकलने के बाद आपस में यह चर्चा चली कि दोनों सम्प्रदाय के साधु आपस मे शास्त्रार्थ करें। शास्त्रार्थ के नियम तय होने के उपरांत कांधला तथा सरदार शहर के दोनों ग्रहस्थों ने शान्तिरक्षा का उत्तरदायित्व दोनों ओर से अपने अपने उपर ले लिया। अस्तु एक भव्य पंडाल में मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज तथा तेरापंथी साधु माणिकचन्द जी में निम्न प्रश्नोत्तर के रूप में चर्चा वार्ता हुई। मुनि सोहनलाल जी-आपके अनुकरण विषयक सिद्धान्त शास्त्रानुसार नहीं है। मुनि माणिकचन्द-वह किस प्रकार ? मुनि सोहनलाल-आपका कहना है कि १-बाड़े में लगी हुई आग से जलने वाली गउओं को बचाने वाला एकान्त पापी है। २-ऊंचे मकान से गिरते हुए बालक को बचाना एकान्त पाप है। ३-यदि कोई अनार्य पुरुष किसी तपस्वी साधु को फांसी लगा कर मारना चाहता है उसके बचाने वाला एकान्त पापी है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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