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________________ (ण) दूसरे विद्यार्थियों की सहायता किया करते थे। घर से मिलने वाले पैसों को वह चाट आदि में खर्च न करके उनसे निर्धन विद्यार्थियों को सलेट, पेंसिल, कापी आदि ले दिया करते थे। दीनों की सहायता करने का उनका यह व्रत उनकी युवावस्था में भी चला । इसी लिये लाहौर के अनारकली बाजार में उन्होंने एक रक्त पीप से भरे हुए दीन अंधे को गाड़ी से टकराते देख कर उसे अपनी गोद मे ले कर उसकी सेवा की थी। आज इतने उच्च कोटि के आदर्श का पालन करने वाले कितने व्यक्ति मिलेंगे ? पने इन्हीं लोकोत्तर गुणों के कारण पूज्य श्री सोहनलाल जी आगे चल कर इतने बड़े अध्यात्मिक नेता बने। श्री सोहनलाल जी के चरित्र में ब्रह्मचर्य का आदर्श एक ऐसा श्रादर्श है, जिसका अनुकरण करने की आज हमारे विद्यार्थियों तथा युवकों को विशेष रूप से आवश्यकता है। आज सिनेमा के अश्लील गाने प्रत्येक बालक के मुख से सुने जा सकते हैं। वास्तव में यह गाने हमारे राष्ट्रीय चरित्र को गिराने में और भी अधिक सहायता दे रहे हैं। श्री सोहनलाल जी ब्रह्मचर्य के ऐसे पक्के थे कि उन्होंने धन समेत आई हुई लक्ष्मी को दुत्कार कर उसे भी ब्रह्मचर्य के मार्ग पर चला दिया। जो राष्ट्र सामूहिक रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करता है, उसका मुकाबला संसार का कोई भी राष्ट्र नहीं कर सकता । श्री सोहनलाल जी के आचरण में जितेन्द्रियता तथा स्वधर्मीवत्सलता उनकी भारी विशेषताएं थीं। उनका मुनि जीवन तथा आचार्य जीवन तो ऐसे आदर्श थे कि हम उसके उपर आलोचनात्मक दृष्टि डालने का भी साहस नहीं कर सकते।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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