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________________ २३४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी महावीर स्वामी ने कमज़ोरों के लिए रक्खे हैं। मैं तो आपकी दया से मन तथा शरीर दोनों से ही निर्बल नहीं हूं। आप मुझे आजा प्रदान करें, जिससे मैं अभी विहार कर सकू।" __ पूज्य श्री को श्री सोहनलाल जी के मन तथा शरीर दोनों की शक्ति पर पूर्ण विश्वास था। अतएव वह बोले ___"अच्छा, यदि तुम्हारी ऐसी सम्मति है तो तुम अभी विहार कर सकते हो।" अस्तु श्री सोहनलाल जी महाराज ने ठाणे तीन से अमृतसर से उसी समय विहार कर दिया। आपके विहार का समाचार तार द्वारा गुजरानवाला भेज दिया गया, जिससे वहां के श्रावकों को बहुत भारी प्रसन्नता हुई। . उधर सवेगी आत्मा राम जी को जब समाचार मिला कि उनके मुकाबले के लिये श्री मुनि सोहनलाल जी महाराज गुजरानवाला आ रहे है तो उनको वड़ी भारी चिन्ता हो गई। वह मन में सोचने लगे ___"सोहनलाल जी का यहां आना तो बहुत बुग हुआ। उनके आने से तो हमारा सारा चातुर्मास किरकिरा हो जावेगा। यदि किसी प्रकार यहां उनका आना रुक सके तो अच्छा है।” इस प्रकार मन मे विचार करते हुए उन्होंने अपने कई श्रद्धालु तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा स्थानकवासी मुख्य श्रावको से कहलवाया कि ___"हम यहां की जिम्मेवारी लेते हैं कि श्री आत्मा राम जी - स्थानकवासी धर्म के विरुद्ध कोई बात न कहेगे। आप तसल्ली रखे। यह हमारी जिम्मेवारी है। आप अमृतसर से साधुओं
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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