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________________ (ट) - जैन धर्म का वह उपदेश भगवान् ऋषभदेव से लेकर उनके, बाद अन्य तेईस तीर्थंकरों ने कालक्रम से दिया । सब से अन्त में उस उपदेश को भगवान महावीर स्वामी ने दिया। भगवान महावीर स्वामी के ग्यारह गणधर थे। इन में सब से प्रमुख गौतम इन्द्रभूति थे। किन्तु उन ग्यारहों गणधरों में से दस की शिष्य परम्परा उनके सामने ही समाप्त हो गई। पांच गणवर श्री सुधर्माचार्य के शिष्य जम्बूस्वामी थे, जो अपने गुरु को मोक्ष होने के बाद मुक्त हुए । उनके बाद भगवान् महावीर स्वामी के शासन की शिष्य परम्परा तब से ले कर अब तक प्रायः अविरल गति से चलती रही है। __ हमारे चरित्रनायक आचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज भी उसी शिष्य परम्परा में आचार्य पदवी के धारक थे। इसी से उनके जीवन चरित्र को पाठकों के सामने उपस्थित किया जाता है । यद्यपि प्रारम्भ में वह अपनी सम्प्रदाय के अनेक श्राचार्यों के समान एक आचार्य मात्र थे, किन्तु बाद में उस सम्प्रदाय के सभी प्राचार्यों ने उनको अपना मुकुटमणि मान कर उनको 'प्रधानाचार्य' मान लिया। इसी कारण इस ग्रन्थ का . नाम 'प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी' रक्खा गया है। वास्तव में आपके उपदेश के कारण पंजाब मे मूर्तिपूजकों की संख्या नहीं बढ़ पाई और आपने पंजाब के स्थानकवासी समाज की रक्षा की! ' जैसा कि इस भूमिका के आरम्भ में कहा गया है आज समस्त भारत में भृष्टाचार, पक्षपात, घूसखोरी आदि का वोलवाला है और राष्टीय आचरण का मान बहुत गिर गया है। ऐसी स्थिति में जनता के सामने एक ऐसे भादर्श के उपस्थिन सम्प्रदाय नाचार्य' मानली रक्खा गयाख्या नहीं
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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