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________________ २२४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी कृत्यों से अरुचि हो गई। इस समय उनको मिथ्यात्व प्रकृति का भी उदय हुआ, जिससे उनको कल्पित ग्रन्थों में रुचि हो गई। जैन शास्त्रों मे श्वेत वस्त्र धारण करने का विधान है, किन्तु आत्माराम जी को पीत वस्त्र पसंद आया। आगम ग्रंथों में मुख पट्टी का स्पष्ट विधान है। जो सदा मुख से लगी रहे उसको ही मुख पट्टी कहा जा सकता है, किन्तु आत्माराम जी ने मुख पट्टी को हाथ में रखना आरम्भ किया। आगम ग्रन्थों में मूर्तिपूजा का लेशमात्र भी विधान नहीं है, किन्तु आत्माराम जी ने मोहनीय कर्म की प्रबलता से अजीव पदार्थ में जीव की श्रद्धा करलो।। आत्माराम जी ने अपना १९२० का चातुर्मास विद्याध्ययन करने के लिये पं० मुनि रत्नचन्द जी के साथ किया था। पं० मुनि रत्नचन्द जी ने आत्माराम जी को निम्नलिखित उत्तम शिक्षाएं दीं__ आरम्भ कार्यो मे धर्म की श्रद्धा नही करना, सिद्वान्त के विरुद्ध प्ररूपणा नहीं करना, मर्यादा से अधिक उपकरण नहीं रखना, ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र में उन्नति करना, अपने आत्मा को शिथिलाचार तथा शिथिलाचारियों से बचाते रहना, अन्य सम्प्रदायों के आडम्बरों को देखकर आडम्बर की इच्छा रूप मोहनीय कर्म का बंध नहीं करना। आजा में धर्म है। अत: भगवान की आज्ञा का लोपन गोपन नहीं करना । हमेशा आचार्य की आज्ञा में रहना । सूत्रविरुद्ध प्ररूपणा करके अनन्त संसारी मत बन जाना, हमारे दिये हुए ज्ञान का दुरुपयोग मत करना। किन्तु आत्मागम जी इस प्रकार की शिक्षाएं प्राप्त करके भी मिथ्यात्व प्रकृति का उदय होने के कारण आत्मिकपतन के मार्ग पर ही चलते रहे।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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