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________________ दीक्षा ग्रहण माणुसते असारग्मि, वाहीरोगाण आलए । . जरामरणपत्थम्मि, खणं पि ण रमामहं ॥ उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन १६, गाथा १५ व्याधि और रोगों के घर, जन्म तथा मरण से घिरे हुए इस असार मनुष्य जन्म मे मैं क्षण भर भी अानन्द नहीं मानता। __ यह पीछे बतलाया जा चुका है कि संवत् १६२३ मे श्री सोहनलाल जी की सगाई (नाता) मांझा (पट्टी) शहर में एक समृद्धिशाली तथा सर्वप्रतिष्टित घराने मे हो चुकी थी। उस समय उनकी आयु •कुल सतरह वर्ष की थी। अगले वर्ष संवत् १९२४ मे लड़की वालों ने विवाह के लिये आग्रह किया तो लाला गंडा मल ने अपने सभी घर वालों की सम्मति से उत्तर दिया कि विवाह २५ वर्ष की आयु से पूर्व नहीं किया जा सकता। इसके पश्चात् जब १६२८ में कन्या पक्ष वालों ने विवाह का प्रस्ताव फिर किया तो श्री सोहनलाल जी ने स्वयं ही यह कह कर इंकार कर दिया कि जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा नहीं होऊंगा, तब तक मैं विवाह नहीं करूंगा। ___संवत् १६२६ मे एक बार श्री सोहनलाल जी व्यापार काय वश पसरूर के समीप एक गाव मे गए। इस समय उनके
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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