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________________ १९२ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अनुकम्पा मनुष्यत्व का प्रधान अंग है। इसी को करुणा भी कहते हैं। जिस मनुष्य मे इस गुण की अधिकता होती है उसे करुणासागर अथवा दयासागर कहा जाता है। हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी का सम्पूर्ण जीवन भी करुणा से परिपूर्ण था। उनकी व्यापारी अवस्था की एक आदर्श करुणा की घटना का वर्णन किया जाता है दशहरा के बाद जो दीपमालिका का पर्व आता है, उसमे प्रत्येक भारतीय अपने अपने घर की सफाई करवाता है। श्री सोहनलाल जी भी अपने भवन की सफाई करवा रहे थे कि उन्होंने अपने भवन में नवीन सामान देख कर अपनी मामी से पूछा सोहनलाल--मामी जी ! अपने घर में यह सामान किस का रक्खा हुआ है ? मैंने तो यहां इसको कभी नहीं देखा। इस पर मामी जी ने उक्षर दिया मामी-बेटा ! यह सामान अपने पड़ोसी दुर्गादास खत्री का है। सोहनलाल-उन्हीं का, जो प्रत्येक साधु साध्वी का व्याख्यान सुनने के लिए प्रतिदिन उपाश्रय जाया करते है, बीच मे एक दिन का भी व्यवधान नहीं पड़ने देते और यथाशक्ति धार्मिक क्रियाये भी करते रहते हैं ? मामी जी-हां! उन्हीं का है। सोहनलाल-तो फिर उन्होंने अपने इस सामान को हमारे यहां क्यों रक्खा है ? मामी जी-उनके यहां कुर्की आने वाली है। कुर्की वालों का नियम है कि वह घर मे जो भी सामान देखते है उसी को
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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