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________________ तथा प्रतिस्पर्धी लिखा गया है । इसके अतिरिक्त गौतम बुद्ध ने अपने प्रारम्भिक जीवन का वर्णन करते हुए यह भी स्पष्ट कहा है कि "मैंने सत्य की खोज में भारत के सभी मतों के अनुसार तप करके देखा । मैंने जटाएं भी रखी और केशों का लॉच करके पांच महाव्रतों का पालन भी किया और कई २ दिन तक उपवास भी रखे।" इसका यह साफ अर्थ है कि गौतम बुद्ध ने कभी जैन दीक्षा भी ली थी। इस प्रकार जैन धर्म का बौद्ध धर्म की शाखा होना तो दूर, उल्टे बौद्ध धर्म को जैन धर्म की शाखा सुगमता से कहा जा सकता है। ऐसी स्थिति में जैन धर्म को बौद्ध धर्म की शाखा बतलाना अपने अज्ञान को प्रकट करते के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। क्या जैन धर्म को भगवान् महावीर स्वामी ने चलाया ? यह एक ऐसा प्रश्न है जो हमारे ऊपर विदेशियों द्वारा लादा गया है। भारत का कोई धर्म भगवान महावीर स्वामी को जैन धर्म का प्रवर्तक नहीं मानता । बौद्ध प्रन्थों में भगवान महावीर स्वामी को जहां गौतम बुद्ध का समकालीन तथा प्रतिस्पर्धी बतलाया गया है, वहां उनको जैन धर्म का प्रवर्तक नहीं बतलाया गया। इसके विरुद्ध बौद्ध ग्रन्थों में स्थान स्थान पर जैनियों के चौबीस तीर्थकरों का वर्णन मिलता है। प्रसिद्ध बौद्ध श्राचा धर्म कीर्ति द्वारा बनाए हुए बौद्ध न्याय के प्रसिद्ध ग्रन्थ 'न्याय बिन्दु' के विद्या विलास प्रेस काशी के संस्करण के पृष्ठ १२६ तथा भाषा पृष्ठ ३२ पर संदिग्ध साध्य वैधर्य का उदाहरण देते हुए कहा गया है. 'अवैधर्योदाहरणम् । यः सर्वज्ञो प्राप्तो वा स
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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